भांग क्या है? इसके कितने नाम हैं? यह नाम कैसे पड़े?
भारत में कन्नाबीस के पौधे को आमतौर पर भांग के पौधे के नाम से जाना जाता है। यह एक बहुउपयोगी पौधा है और इसका इतिहास भी मानव के इतिहास के जैसा ही विविधतापूर्ण है। स्थान और समय के अनुसार मनुष्य ने इसका उपयोग अलग-अलग प्रकार से किया। कहीं पर इसके रेशे से कपड़े बनाए गए, कहीं पर इसके बीज भोजन के रूप में उपयोग में लाए गए, कहीं इसे औषधि के रूप में प्रयोग किया गया, कहीं नशे के लिए, कहीं काले जादू में और कहीं अध्यात्म के लिए। भारत में इसके विविध उपयोग के आधार पर इसको कई अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे विजया, भंग, मदनी, शुक्रतरू, बंग, बूटी आदि। उस पर हम आगे चर्चा करेंगे, पर उसके पूर्व हम इतिहास में किस प्रकार इसका फैलाव हुआ और पश्चिमी वनस्पति शास्त्र में किस प्रकार इसका नामकरण हुआ, उस पर चर्चा कर लेते हैं।
पश्चिमी विज्ञान जगत ने भांग के पौधे को मुख्यतः तीन प्रजातियों में बांटा: कन्नाबीस सतीवा, कन्नाबीस इंडिका और कन्नाबीस रूडालिस। 16-18वीं शताब्दी में यूरोप के देश विश्व भर में अपने उपनिवेश बना रहे थे, और धीरे-धीरे सम्पूर्ण विश्व में किसी ना किसी यूरोपीय देश का आधिपत्य हो गया। इस दौर में जब यूरोपीय देश नए-नए महाद्वीपों में जा रहे थे और युद्ध करके उन पर कब्जा कर रहे थे, उस समय उनके साथ धार्मिक गुरु, वैज्ञानिक, समाजशास्त्री, इतिहासकार आदि भी जाते थे और परिस्थिति के अनुरूप अपने-अपने कार्यों को अंजाम देते थे।
इसी क्रम में स्वीडन के एक वनस्पति शास्त्र वैज्ञानिक, कार्ल लिन्नेउस (Carl Linnaeus) ने 1753 में अलग-अलग महाद्वीपों का भ्रमण करके वहां पाए जाने वाले पौधों का वर्गीकरण किया और किताब लिखी “Species Plantarum”। इस किताब में भांग की केवल एक प्रजाति का वर्णन किया गया था, और वो थी Cannabis Sativa। Cannabis Indica का नामकरण 1785 में तब हुआ जब फ्रांस के वनस्पतिशास्त्री Jean Baptiste Lamarck को भारत से लाए हुए भांग के पौधे दिए गए। उन्होंने भारत से लाए हुए भांग के पौधे की छाल, पत्तियों के आकार और पौधे की ऊंचाई में भिन्नता देखते हुए यह निर्णय किया कि इसका Cannabis Sativa से अलग नामकरण किया जा सकता है। इस आधार पर उन्होंने भारत में मिलने वाले भांग के पौधे को नाम दिया Cannabis Indica। Cannabis Sativa के पत्ते चौड़े, छोटे और पत्तों के मध्य जगह कम होती है, जबकि Cannabis Indica के पत्ते पतले, लंबे और पत्तों के मध्य जगह ज्यादा होती है। कन्नाबीस इंडिका में टहनियां अधिक होती हैं, जबकि कन्नाबीस सतीवा में टहनियां कम होती हैं।
भांग के नर और मादा पौधे अलग-अलग होते हैं, इसलिए इंडिका और सतीवा के संयोग से हजारों अलग प्रजातियां उत्पन्न हो गई हैं। वहीं पर मध्य यूरोप और रूस में एक और प्रजाति पाई गई, जिसको D.E Janischewsky ने 1924 में नाम दिया, Cannabis Rudalis। Cannabis Rudalis में THC की मात्रा कम पाई जाती है, और CBD की मात्रा अधिक पाई जाती है। Cannabis Rudalis का उपयोग रूस और मंगोल के लोग काफी लंबे समय से दवा के रूप में करते रहे हैं, परंतु इसका प्रसार इंडिका और सतीवा जितना नहीं है।
आज भांग धरती के इतने बड़े भूभाग पर पाया जाता है और उनमें इतनी अधिक विविधता लक्षित होती है कि आकृति विज्ञान के आधार पर भांग के पौधे का वर्गीकरण करना बहुत कठिन हो गया है, इसलिए कुछ वनस्पति शास्त्री सारे भांग के पौधों को कन्नाबीस सतीवा ही मानते हैं।
भांग के पौधों में विविधता के कारण
आम तौर पर ऐसा माना जाता है कि भांग के पौधे का उद्गम तिब्बत, हिमालय में हुआ, जहां से यह विश्व के अन्य हिस्सों में फैल गया। भांग के पौधे में नर पौधा अलग होता है और मादा पौधा अलग होता है, साथ ही यह आलू, तंबाकू और अफीम के पौधे की तरह हर प्रकार की मिट्टी, जलवायु और रेगिस्तान से लेकर बर्फीले पहाड़ों तक में आसानी से उग जाता है। भांग के पौधे के परागकण बहुत हल्के और हवा में बहुत दूर तक जाने में सक्षम हैं, इसलिए भांग का प्रसार बहुत तीव्रता से होता है।
भांग हिमालय के दोनों किनारों, यानी भारत और चीन की तरफ से पूरी दुनिया में फैला। लगभग हर प्रकार की मिट्टी और जलवायु में उगने की क्षमता के कारण भांग तीव्रता से फैला तो जरूर, परंतु मौसम और जलवायु के अनुसार भांग की नई-नई प्रजातियों का विकास हुआ। इस क्रम में हम पाएंगे कि हिमालय में पाई जाने वाली प्रजातियों में नशा उत्पन्न करने की क्षमता ज्यादा पाई जाती है, जबकि जो प्रजातियां यूरोप में विकसित हुईं, उनमें नशे की मात्रा कम परंतु फाइबर की मात्रा अधिक पाई जाती है। हिमालय के भारतीय हिस्से से लेकर पाकिस्तान/अफगानिस्तान के बड़े भूभाग पर अलग-अलग जलवायु और भूगौलिक वातावरण के कारण भांग के पौधे की पत्तियों, ऊंचाई, रंग, आदि में विविधता पाई जाती है।
एशिया महाद्वीप में यह पौधा बहुत बड़े क्षेत्रफल में पाया जाता है। इसका विस्तार कैस्पियन सागर, ईरान, साइबेरिया, किर्गिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और दक्षिणी और केन्द्रीय रूस तक है। चीन और भारत की तरफ के हिमालय से, इसके बीज नदियों के माध्यम से मैदानी क्षेत्रों में बहकर गए और भारत और चीन के मैदानों में इसका फैलाव हो गया। चीन की पीली नदी, ह्वांग हो और भारत में गंगा नदी के साथ बहकर आए इसके बीजों ने इसका विस्तार चीन के मैदानी क्षेत्रों में और भारत के मैदानों में कर दिया। भारत में संभवतः गंगा के घाटों के किनारे उगने के कारण इसका नाम गांजा भी पड़ गया।
समय के साथ-साथ, भारत में कश्मीर से लेकर असम तक, और दक्षिण के तमिलनाडु, केरल के गर्म क्षेत्रों में इस पौधे का विस्तार हुआ और इन गर्म क्षेत्रों की जलवायु के अनुकूल भी इस पौधे ने अपने को ढाल लिया है, और भारत में उगने वाले भांग में नशा उत्पन्न करने वाले गुण के साथ रेशा भी मौजूद है। वहीं पर चीन से यूरोप की तरफ, इसके फैलाव के दौरान इसके नशा उत्पन्न करने वाले गुण कम होते गए, पर उनमें रेशा अच्छा पाया जाता है।
भारत के कश्मीर और लद्दाख में पाए जाने वाले भांग में नशे की मात्रा अधिक पाई जाती है। वहीं पर जैसे-जैसे हम हिमालय के पूर्व में असम की तरफ बढ़ते हैं तो नशे की मात्रा कम और रेशे का अनुपात उसमें अधिक परिलक्षित होने लगता है। जब भांग की खेती भारत के मैदानी क्षेत्रों में करी जाती है, तो उसमें अर्क की मात्रा कम पाई जाती है, जिससे चरस का उत्पादन कम होता है, परंतु भांग के फूल और उसके साथ के पत्तों में नशा उत्पन्न करने के गुण मौजूद रहते हैं, जिससे भारत का गांजा बनता है।
भारत के अन्य हिस्सों में भांग के बीज बनने के समय उसके फूल और पत्तों में नशे वाले गुण आते हैं। वैसे भारत के असम, बिहार, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पंजाब, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड, मणिपुर, त्रिपुरा आदि में यह खरपतवार की तरह उगता है और समुद्र तल से 10000 फीट की ऊंचाई तक पाया जाता है। वहीं पर देश के पश्चिमी क्षेत्रों में यह बहुतायत में नहीं पाया जाता जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक आदि।
भांग तेरे कितने नाम
विश्व में भांग के पौधे को कई नामों से जाना जाता है, और क्योंकि इसका इतिहास पूर्वी सभ्यताओं में ज्यादा विस्तृत रूप से मिलता है, इसलिए इसके उपयोग आदि के आधार पर इसके बहुत सारे नामकरण भारत, चीन और अफ्रीका में मिलते हैं। वर्तमान में भांग के पौधे और पौधों से बने उत्पाद को लगभग 1200 अलग नामों से जाना जाता है तथा भांग की 2300 अलग-अलग प्रजाति या नस्लें पाई जाती हैं। हम उनमें से सबसे अधिक प्रचलित नामों पर एक दृष्टि डाल लेते हैं:
क्रमांक | नाम | देश | टीका |
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1. | माँ | चीन | भांग का सबसे पुराना प्रचलित नाम, चीन के साहित्य से |
2. | ताइमा | जापान | चीन से आयातित नाम |
3. | विजया | भारत | जो विजय दिलाता है, आयुर्वेद में वर्णित नाम |
4. | भांग | भारत | हिंदी में प्रचलित |
5. | भंग | भारत | संस्कृत में |
6. | काना | भारत | कन्नड़ भाषा में |
7. | किन्नुब | भारत | तमिल भाषा में |
8. | बुद्धिकारी | भारत | बुद्धि के लिए |
9. | चरस | भारत | भांग के पौधे के पत्ते, फूल और तने से बना पदार्थ |
10. | गांजा | भारत | भांग के पौधे के फूल |
11. | हेम्प | अंग्रेजी | कन्नाबीस सतीवा |
12. | हशीश | यूरोप | कन्नाबीस सतीवा |
विजया
भारतीय आयुर्वेद में भांग के पौधे का सबसे प्राचीन और सर्वाधिक प्रसिद्ध नाम विजया है, जिसका वर्णन अथर्ववेद में मिलता है। विजया का अर्थ है “जो विजय दिलाए।” विजय नाम के पीछे का औचित्य यह है कि यह पौधा विजयी होने के गुण पैदा करता है, इसमें पौधे के हर भाग में अलग-अलग गुण मौजूद रहते हैं। इसके पुष्प को विजयका, अर्क को विजयार्क, पत्तियों को भंगिका, मूल को श्यामवर्णा आदि नाम से पुकारा गया। अथर्ववेद के अनुसार विजया दर्दनिवारक, भूत-प्रेत, बुरी शक्तियों को दूर करने वाला, जादू-टोने में काम आने वाला, अनिद्रा, अपस्मार, हिचकी, बुखार, आंतों का दर्द, अजीर्ण, मोटापा, घाव आदि को दूर करने वाला है। भूत-प्रेत आदि को दूर करने वाला गुण होने के कारण इसके अन्य कई नाम पढ़े जैसे: भूतनाथ, शिवप्रिया आदि।
भांग
भारत में हिंदी भाषा में इसका प्रचलित नाम भांग है। संभवतः यह नाम संस्कृत के भंग शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है भांग के पौधे को उसके पुष्प और पत्तियों के साथ पीसकर बनाई जाने वाली दवा। वैसे भी भारत में भांग से बने तीन पदार्थ विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं – भांग, गांजा और चरस।
चरस
चरस शब्द भी प्राचीन भारत से निकल कर आज सम्पूर्ण विश्व में एक पदार्थ विशेष का प्रतिनिधित्व करता है। चरस से अभिप्राय भांग के पौधे के अर्क या रेजिन को उसके पत्तों, तनों और फूलों के साथ एकत्र करके और उसे सुखाकर और अंततः उसे घिसकर जो पेस्ट बनता है, वह चरस कहलाता है। भारत के उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर राज्यों में यह अपने उच्चतम रूप में पाया जाता है। चरस शब्द का प्रयोग भारत में ही नहीं, अफगानिस्तान, पाकिस्तान आदि में भी विशेष रूप से मिलता है। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा और अफगानिस्तान में भी यह उच्चतम रूप में पाया जाता है। भारतीय चरस का नामक विश्व में मशहूर है और मुख्यतः विदेशों में भी यही चरस उपलब्ध है। हिमाचल के कुल्लू जिले के मलाणा गांव की चरस को “मलाणा क्रीम” कहा जाता है, जो विश्व की उच्चतम गुणवत्ता वाली चरस मानी जाती है।
गांजा
गांजा भी भांग के पौधे से बनाया जाता है, पर इसके लिए पौधे के पुष्प को सुखाया जाता है, और कुछ मामलों में पुष्प के साथ पत्तियों और तनों को भी सुखाकर गांजा बनाया जाता है। गांजा शब्द हिंदी का शब्द है, जो आज सम्पूर्ण विश्व में प्रचलित है। गांजा मुख्यतः भारत, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश में प्रमुखता से पाया जाता है, क्योंकि इन देशों में इसकी खेती होती है। भारत के अन्य राज्यों के अलावा, गांजा केरल, तमिलनाडु आदि दक्षिण भारतीय राज्यों में भी प्रचुरता से पाया जाता है।
अन्य नाम
भारत में संस्कृत और हिंदी के अलावा, अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी भांग के पौधे और उसके उत्पादों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। भांग को तमिल भाषा में “किंनुब” और कन्नड़ भाषा में “काना” कहा जाता है। संस्कृत में इसके 250 नाम मिलते हैं जैसे: मदन, भूतनाथ, भूतनाशन, बृहस्पति, वशीनक, काशम्रक, सौम्यगंधी, महामूल, भूतपुष्पी, भूतधनी, शूलघ्न, विषघ्न, हृदय, शिवप्रिया आदि।
उपयोग के आधार पर नाम
भारत में भांग के पौधे के विविध उपयोग के आधार पर इसके कई नाम रखे गए हैं। इसके रेशे से वस्त्र बनने के कारण इसे “वस्त्र” भी कहा गया, इसके बीजों से पौष्टिक तेल बनने के कारण इसे “पूष्प” कहा गया, और इसके नशा उत्पन्न करने वाले गुण के कारण इसे “मदन” कहा गया। भांग के पौधे के विविध उपयोग को देखते हुए, आयुर्वेद में इसके अलग-अलग भागों के भी नाम रखे गए हैं जैसे: इसके पुष्प को विजयका, अर्क को विजयार्क, पत्तियों को भंगिका, मूल को श्यामवर्णा आदि।