भांग , भारत के लगभग ५० प्रतिशत जिलो में एक खरपतवार की तरह उग जाती है, और भारत में जो भांग उगती है, वो कैनाबिस इंडिका है, और इसका प्रयोग मुख्यतः नशे और औषधि के रूप में होता है | पश्चिम के देशो में जो भांग उगती है वो रेशे और धागे बनाने के काम आती है और उसे कैनाबिस सतिवा के नाम से जाना जाता है |
भारत में सदियों से आयुर्वेदिक औषधि के रूप भांग का प्रयोग होता रहा है ,और आयुर्वेद की जरूरतों को पूरा करने लायक भांग खरपतवार की तरह ही उग जाती है और सरकार इस भांग को एकत्र कराकर, औषधि निर्माताओं को उपलब्ध कराती है | आयुर्वेद में भांग के शोधन के पश्चात ही उपयोग का प्रावधान है, और अधिकतर आयुर्वेदीय औषधियों में भांग का मिश्रण के रूप में प्रयोग किया जाता है , इसलिए आयुर्वेदाचार्यो ने अभी तक इसके मानकीकरण पर जोर नहीं दिया है |
किसान के सामने दो प्रकार की भांग है, एक वो भांग जिस से रेशा, कागज़ आदि अन्य औद्योगिक पदार्थ बनाए जाते है (हेम्प) और दूसरी वो भांग जिस से औषधि और नशे के पदार्थ बनाए जाते है | भारत के उत्तराखंड राज्य में २०१७ में हेम्प का लाइसेंस ले कर खेती करने की इजाजत दी गयी , पर २०२४ तक इस दिशा में कुछ अधिक प्रगति नहीं हुई है और इसके मुख्य कारण निम्नलिखित है :
- सीड्स एक्ट १९६६ में हेम्प बीज के आयत की अनुमति नहीं है |
- भारत में प्राकृतिक रूप से भांग उगती है, हेम्प नहीं, इसलिए हेम्प के बीज की अनुलब्धता |
- हेम्प में टी एच सी की मात्रा प्राकृतिक कारणों से भी बढ़ जाती है, और सरकार द्वारा किसान की फसल नष्ट किये जाने का खतरा बना रहता है |
- सरकार द्वारा राजनैतिक कारणों से इसका समर्थन करने में परहेज हो रहा है |
- उद्योगपति हेम्प से अधिक , भांग की खेती में निवेश करना चाहते है, जिस से वो अधिक लाभ कमा सके |
- अनुसंधान और उसके लिए धन की कमी |
उपरोक्त व्याध्यान के बाद भी प्रश्न उठता है कि क्या वर्त्तमान स्तिथि में, हेम्प की खेती, किसान के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकती है ?
अगर सरकार सहयोग करे तो निश्चित रूप से हेम्प की खेती, किसान और राष्ट्र के आर्थिक उत्थान में बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकती है , कैसे ?
सरकार को इस दिशा में क्या प्रयास करना चाहिए ?
– भारत में उपलब्ध हेम्प की प्रजातियों की पहचान करी जाए |
– विश्वविध्यालयो में हेम्प पर अनुसंधान करके नयी किस्मे विकसित करी जाए |
– भारत में उपलब्ध भांग और हेम्प की प्रजातियों को सूचीबद्ध किया जाए |
– आयुर्वेद में उपलब्ध औषधियों का पेटेंट करवाए |
– सरकार को अपने तंत्र के माध्यम से किसानो में ज्ञान का प्रचार और प्रसार करना चाहिए |
– शोध करे कि हेम्प और भांग मिलकर , कही भारत की जैव विविधता को, प्रभावित तो नहीं करेगे ?
– शराब और भांग के नशे का तुलनात्मक , वैज्ञानिक अध्यन किए जाए और उसके अनुरूप आबकारी नीति बने |
किसान को क्या फायदा होगा ?
किसान की आमदनी में कई गुना वृद्धि होगी : एक एकड़ हेम्प की खेती में , कपास की तुलना में ३ गुना अधिक रेशा उत्पन्न होता है , ४ एकड़ के बराबर जंगल को काट कर जितना कागज़ बनता है , उतना एक एकड़ हेम्प की खेती से कागज़ बनाया जा सकता है , फूल , फल , पत्ते , जड़े दवाई बनाने के और मनोरंजन के काम आते है |
जमीन की सेहत सुधरेगी : भांग में टैप रूट होती है , जो जमीन में अधिक गहराई तक जाती है और मिट्टी का कटाव नहीं होने देती | भांग की खेती, आम तौर पर प्राकृतिक रूप से करी जाती है , जिस से मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है |
कम कीटनाशक का प्रयोग : कपास की तुलना में भांग में नगण्य कीटनाशको का प्रयोग होता है , कपास भारत वर्ष में ६ प्रतिशत जमीन पर उगाया जाता है, परन्तु उसमे ३७ प्रतिशत कीट नाशक डाले जाते है | कपास की तुलना में भांग का कपडा ३ गुना अधिक मजबूत होता है |
बाजार में बड़ी मांग : भांग के कपड़ो और अन्य उत्पादों के बाजार में भारत का योगदान नगण्य है , इसलिए इसमें संभावना अधिक है |
biatris bajales