जैसा कि हमने पिछले लेख मे देखा था शराब लगभग मस्तिष्क के हर हिस्से को प्रभावित करती है | शराब मस्तिष्क मे अन्य तत्वो के साथ साथ डोपामाइन केन्द्रो को भी प्रभावित करती है , डोपामाइन वो रसायन है जो हमे अच्छा महसूस कराता है | जब हम शराब पीते है तो डोपामाइन की वजह से हमे अच्छा महसूस होता है और यह हमे प्रेरित करता है कि हम शराब का सेवन पुनः करे | जब एक बार शराब और अच्छा महसूस करने का संबंध या रिश्ता स्थापित हो जाता है तो पुनः डोपामाइन के उत्सर्जन के लिए हम अन्य कार्यो को त्याग कर शराब कि जरूरत महसूस करने लग जाते है | इस प्रकार से एक आदत या लत सी पड़ जाती है कि हम दोबारा शराब पिये |
यह रिश्ता एक बार स्थापित हो जाने के पश्चात दूसरी समस्या उत्पन्न होती है , मस्तिष्क डोपामाइन का उत्सर्जन कम कर देता है या डोपामाइन रेसेप्टर्स की संख्या मे कमी करना शुरू कर देता है | इसका अर्थ हुआ की आदमी को वही अनुभव लेने के लिए अधिक शराब का सेवन करना शुरू कर देता है , उसे जो अच्छा लगने की अनुभूति 3 पेग से होती थी उसी के लिए उसे चार पेग पीने पड़ते है और इस प्रकार से यह मात्रा बढ़ती जाती है | इस मात्रा के बढ्ने का अर्थ है , लिवर पर अधिक दबाव पड़ना | हमारा लिवर शराब को अन्य घटको मे तोड़ कर शरीर से बाहर निकालने का प्रयास करता है , इस प्रक्रिया मे लिवर को नुकसान पहुचता है | शराब को पचाने की प्रक्रिया मे लिवर के कुछ सेल मर जाते है और वो लिवर पर ही एकत्र रहते है और फैटी लिवर की बीमारी होने लगती है | इसके बाद भी अगर आदमी शराब पीना जारी रखता है और अधिक डोपामाइन के चक्कर मे मात्रा भी बढ़ाता जाता है तो लिवर सिरोसिस की बीमारी होने की संभावना बढ़ती जाती है | मनुष्य को इसका पता तब चलता है जब बहुत देर हो जाती है और लिवर खराब होने की वजह से मृत्यु हो सकती है |
शरीर से शराब कि निकासी
जायदा शराब पीने वाला व्यक्ति जब अचानक से शराब पीना बंद करता है तो शराब निकासी के लक्षण उभरने लगते है जैसे शरीर और हाथ का कंपित होना , चिड़चिड़ा होना, बेचैनी, मतिभ्रम और दौरा पड़ना | शराब निकासी के लक्षण इसलिए शुरू होते है मस्तिष्क का रसायन संतुलन बिगड़ जाने लगता है और मस्तिष्क कोशिकाए अति अधिक प्रतिक्रिया करने लग जाती है |
शराब निकासी एक अस्थाई स्थिति है जो मस्तिष्क मे अस्थाई रासायनिक असंतुलन की वजह से बनती है फिर भी यह मुख्य वजह बन जाती है कि मनुष्य शराब छोड़ नहीं पाता |