ज्ञान की धारा, धरती पर दो जगह से प्रवाहित होनी शुरू हुई , एक पूर्व से और एक पश्चिम से ; जो ज्ञान धारा पूर्व से प्रवाहित हुई उसे हम “ पूर्वी ज्ञान धारा “ कहेंगे और पश्चिम से प्रवाहित हुई उसे हम “ पश्चिमी ज्ञान धारा” कहेंगे ज्ञान की धारा से अर्थ मनुष्य की एक पीढ़ी द्वारा जो ज्ञान अर्जित किया गया , वो अगली पीढ़ी को हस्तांतरित किया गया | जो भी मनुष्य ने जाना अपने जीवन काल मे, वो उसने आने वाली पीढ़ी को किताबों के माध्यम से, लोक परम्पराओ, गीतो, कहानियो या अन्य तरीके से पहुचाया | इस श्रिंखला मे भांग के बारे मे पूर्व की ज्ञानधारा मे देखे तो बहुत कुछ प्राप्त होता है , परंतु पश्चिमी ज्ञान धारा मे इसका इतिहास कोई बहुत जायदा विस्तृत नहीं है और जो भी है , उसे अमेरिका ने कुछ व्यापारियो और नेताओ को फायदा पहुचाने के लिए , मिटाने का प्रयास किया |
चीनी ज्ञान धारा मे भांग की खेती के बारे मे विस्तार से वर्णन है , चीन मे लगभग 10,000 से 12,000 वर्ष पूर्व से भांग की खेती होती आई है | जब तक कागज का आविष्कार नहीं हुआ तब तक चीन के किसानो ने अपने अनुभव, मौखिक रूप से आने वाली पीढ़ियो तक पहुचाया | चीन मे खेती पर सबसे पुरानी पुस्तक ” शी शेङ्ग झी शू ” मे भांग की खेती के बारे मे विस्तार से जानकारी दी गयी है | इस किताब मे लिखा है , कौन से महीने मे भांग के बीज बोने चाहिए , कितना और किस प्रकार के खाद का इस्तेमाल करना चाहिए , कब और कितना पानी देना चाहिए और किस समय फसल काटी जानी चाहिए |
चीन के मौसम के हिसाब से वहाँ पर मार्च के अंतिम दस दिनों मे या अप्रैल के शुरू के दस दिनों मे भांग के बीज की बुवाई करी जानी चाहिए | इस किताब के अनुसार बारिश शुरू होने से तत्काल पहले या पहली बारिश होने के साथ ही भांग के बीज बो देने चाहिए , खरपतवार तब निकालना चाहिए जब भांग के दो पत्ते आ जाए | भांग का पौधा अगर जायदा जल्दी लगाया जाएगा तो उसकी डंठल अधिक कठोर, रेशा अधिक सख्त एवं गांठ अधिक होती है जिस से पौधे की उपयोगिता कम हो जाती है | अगर भांग का पौधा देर से लगाया जाता है तो उसके रेशे की मजबूती कम होती है , दोनों हालातो मे जल्दी बीज बोना अधिक उचित रहता है |
जब भांग का पौधा 33 सेंटिमेटर का हो जाये तो उसमे रेशम के कीड़े या अन्य जानवरो के मल की खाद का इस्तेमाल करना चाहिए , इनमे भी रेशम के कीड़े के मल की खाद को अधिक उपयोगी बताया गया है | भांग के पौधे की सिंचाई के लिए नदी या झरने के पानी का उपयोग करना चाहिए अगर नदी या झरने का पानी उपलब्ध ना हो तो कुंवे का पानी उपयोग मे ला सकते है , परंतु पहले कुंवे के पानी को सूर्य की रोशनी मे गरम करने का विधान दिया गया है | अगर जमीन मे नमी की मात्रा सही है तो सिंचाई नहीं करनी चाहिए और भांग के पौधे को बार बार सिंचित नहीं करना चाहिए |